जीवन की पीड़ाओं को शब्दों में उंडेलने का प्रयास करता, प्रेम-मिलन,विरह,दुख, भाग्य आदि विभिन्न भावनाओं को शब्द देता एक कविता-गीत-ग़ज़ल शायरी का ब्लॉग। ज़िन्दगी की सज़ा काटने में आयीं दुश्वारियों को शायरी की ज़ुबान देने की एक कोशिश।
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
वो चाँद ढल रहा है
इधर मेरी ज़िन्दगी ,
ये रात आखिरी है ,
तेरे मेरे साथ की ।
मैं तेरे क़दमों की ,
ख़ाक भी न पा सका ,
चूमेगा कोई मेहंदीयां ,
तेरे हाथ की ।
खार भी राहों के तेरी ,
मैं न चुन सका ,
बिंदिया सजायेगा कोई ,
तेरे माथ की ।
तेरे बिना अब ज़िन्दगी ,
न बीत पाएगी ,
तुझसे जो पहले कट गयी,
वो और बात थी ।
दो चार दिन की बात हो तो ,
कोई काट ले ,
मुझको तो मिलनी है सज़ा ये ,
ता - हयात की ।
ख़ाक = धूल, खार = कांटे , ता - हयात = पूर्ण जीवन
रविवार, 2 नवंबर 2008
तेरे हुस्न की शराब से
मैं इश्क हूँ ,मजबूर हूँ ,
तेरे सामने भले नहीं ,
तेरे हुस्न की शराब से ,
जो चढा है , मैं वो सुरूर हूँ ,
क़दमों में जो गिरा तेरे ,
उस शख्स का गुरूर हूँ ,
तू हूर है जन्नत की तो ,
मैं भी खुदा का नूर हूँ ,
तेरे हुस्न के चर्चे हैं तो ,
मैं इश्क में मशहूर हूँ ।
मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008
आह लगती है
खुशी की चाहत भी मुझको , इक गुनाह लगती है ,
जिसकी मंजिल हो सिर्फ़ नाकामी ,
जिंदगी मेरी मुझे ऐसी राह लगतीहै।
जब हवा झूम-झूम चलती है......
जब घटा आसमां पर छाती है , मेरी यादों से ग़म बरसता है,
जब हवा झूम-झूम चलती है , मेरे ज़ख्मों से खून रिसता है।
दूर जब कोई गीत सुनता हूँ , एक उदासी सी चली आती है ,
चांदनी बादलों से छन-छन के , मुझमें इक आह सी जगाती है,
तारे सब मुझपे मुस्कुराते हैं , चाँद छुप-छुप के मुझपे हंसता है।
जब हवा झूम-झूम चलती है , मेरे ज़ख्मों से खून रिसता है।
मुझमें क्या दर्द है जो पलता है , आज तक मैं समझ नहीं पाया,
जिसको कर याद कुछ सुकूं पाऊं ,मुझको वो ख्वाब तक नहीं आया,
मेरा दामन है पकड़े मायूसी , ग़म मेरे साथ -साथ चलता है .
जब हवा झूम -झूम चलती है , मेरे ज़ख्मों से खून रिसता है ।
लोग खुशियाँ कहाँ से लाते हैं , ख़ुद से अक्सर सवाल करता हूँ,
सूनी आंखों से देखता रहकर , देर तक सोच में गुम रहता हूँ ,
जब , बांह बांहों में डाल राहों में , कोई जोड़ा हसीं निकलता है .
जब हवा झूम - झूम चलती है , मेरे ज़ख्मों से खून रिसता है