अभी तुमको दिल का, लगाना न आया,
सलीक़े से दिल को, चुराना न आया,
मिलाकर अभी आँखें, तुम बात करते,
के नज़रें हया से, झुकाना न आया,
हो तुम तैश में, हमको तेवर दिखाते,
के अन्दाज़ ख़ालिस, ज़नाना न आया,
के सीखोगे, धीरे ही धीरे ये बातें,
अभी हाल दिल का, जताना ना आया,
मैं बांहों में भर, चूम लूं लब
तुम्हारे,
वो माहौल तुमको, बनाना न आया,
ये नाज़ुक बदन, और ये ज़ुल्फ़ें घनेरी,
कहूं कैसे अपनी, बहाना न आया,
के नाचोगे बिन घुँघरू, छम-छम, छमक-छम,
ज़ुबां पर अभी बस, तराना ना आया,
के “संजीव” नाक़ामे उल्फ़त रहें वो,
क़सम से अभी तो, ज़माना ना आया............संजीव मिश्रा
वाह .. क्या बात है सुन्दर शेर हैं सभी ...
जवाब देंहटाएं