किसी ने तो चलो
बोला, मुबारक़-दिन गुलाबों का,
दिया है गुड़ न
बनिए ने, मगर है बात गुड़ सी की,
मेहरबानी है उनकी
ये, है ये अहसान,
इक उनका,
कि हमको याद
रक्खा है,अता हमको ये इज्ज़त की,
हमें वरना यहाँ
पर पूछता है कौन, क्या हैं हम,
उन्होंने कुछ तो
समझा है, इनायत जो ये हम पर की,
दुआएं हैं मेरी
उनको, रहें वो ख़ुश,
कहीं भी हों,
यही
"संजीव" को काफ़ी, किसी ने गुफ़्तगू तो की.........संजीव मिश्रा