उल्फ़त के रंग से, मुहब्बत की होली,
जो उनसे न खेली, तो क्या खेली होली,
जो जानम को कस के, न बांहों में जकड़ा,
गले न मिले ग़र, तो क्या खेली होली,
न बालों को कस के, पकड़ के जो उनके,
न बोसे लिए ग़र, तो क्या खेली होली,
जो, उन्होंने हया से, मुझे याद करते,
न कुर्ती निचोड़ी, तो क्या खेली होली,
जो “संजीव” ने उनको अपने ही रंग में,
रंगा न अगर, फ़िर, तो क्या खेली होली......संजीव मिश्रा
बहुत खूब ...सच अहि जब साजन के साथ न खेली तो काहे कि होली ..
जवाब देंहटाएंलाजवाब .. बधाई होली की ....