सोमवार, 2 दिसंबर 2013

धीरे-धीरे.......



सब रूठ रहे हैं दोस्त मेरे धीरे-धीरे,
सब झूठे रिश्ते टूट रहे धीरे-धीरे,

था एक मुलम्मा चढ़ा हुआ हर सूरत पर,
अब दिखते असली चेहरे हैं धीरे-धीरे,

अपनों की गिनती घटी जाये जीवन जैसी,
उम्र परायों सी बढ़ती धीरे-धीरे,

जो भी हंसकर के मिला, ग़ैर फिर रहा वो  कब,
ना-दानी जायेगी मेरी धीरे-धीरे,

कुछ क़र्ज़ महफ़िलों का मुझ पर चढ़ बैठा था,
तन्हाई चुकाएगी सब अब, धीरे-धीरे,

सब मौसम के थे फूल, खिले थे कुछ दिन को,
वीरानी पड़ी दिखायी  है अब  धीरे-धीरे,

हर चीज़ वक़्त के साथ बदल ही जाती है,
तुम समझोगे “संजीव”, मगर धीरे-धीरे.... संजीव मिश्रा

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