ज़िन्दगी पहेली है ,
ग़म की इक सहेली है ,
महफ़िलों ने ठुकराया ,
तनहाईओं में खेली है ,
मायूसियों की नीवों पर ,
उदासी की हवेली है ,
चहलो – पहल के जमघट में ,
ज़िन्दगी अकेली है .
जीवन की पीड़ाओं को शब्दों में उंडेलने का प्रयास करता, प्रेम-मिलन,विरह,दुख, भाग्य आदि विभिन्न भावनाओं को शब्द देता एक कविता-गीत-ग़ज़ल शायरी का ब्लॉग। ज़िन्दगी की सज़ा काटने में आयीं दुश्वारियों को शायरी की ज़ुबान देने की एक कोशिश।
सोमवार, 17 नवंबर 2008
शनिवार, 15 नवंबर 2008
जिंदगी है प्याला ........ भाग १
जिंदगी है प्याला ,
तकदीर है शराब ,
जिसे जितनी मिल गयी , वो
उतना ही कामयाब ।
जिसका भरा है प्याला ,
बस वो ही है निराला ,
उसने भुलाया सबसे ,
पहले पिलाने वाला ,
वो समझा मैंने प्याले ,
में ख़ुद भरी शराब । ज़िन्दगी है प्याला........ ।
जिसका है प्याला खाली ,
दर - दर का वो सवाली ,
उस खाली पर भरा हर -
प्याला बजाता ताली ,
कहते ख़राब प्याला ,
नापे बिना शराब। ज़िन्दगी है प्याला........ ।
तकदीर है शराब ,
जिसे जितनी मिल गयी , वो
उतना ही कामयाब ।
जिसका भरा है प्याला ,
बस वो ही है निराला ,
उसने भुलाया सबसे ,
पहले पिलाने वाला ,
वो समझा मैंने प्याले ,
में ख़ुद भरी शराब । ज़िन्दगी है प्याला........ ।
जिसका है प्याला खाली ,
दर - दर का वो सवाली ,
उस खाली पर भरा हर -
प्याला बजाता ताली ,
कहते ख़राब प्याला ,
नापे बिना शराब। ज़िन्दगी है प्याला........ ।
शनिवार, 8 नवंबर 2008
तुझसे बिछड़ने की घड़ी जब आएगी ........
तुझसे बिछड़ने की घड़ी जब आएगी ,
जान कैसे जिस्म में रह पायेगी ,
हर पल यही सदा क़त्ल मुझको करे,
तू जायेगी, तू जायेगी, तू जायेगी ।
तू चली जायेगी मैं रह जाऊँगा ,
गम भला कैसे ये मैं सह पाउँगा ,
रास्तों तुम कितने खुश नसीब हो ,
मैं कहाँ उन क़दमों को चूम पाउँगा ,
ख्वाब में ही दीद अब होगा तेरा ,
तू कहाँ हद्दे नज़र में आएगी ।
तेरे बगैर साँस गर चलती रही ,
ज़िन्दगी उसको न मैं कह पाउँगा ,
पहलू मैं तेरे ,आज मर जाऊं मगर ,
तेरे बिना ज़िंदा नहीं रह पाऊंगा ,
जाना तेरा देखूंगा इन आंखों से मैं ,
किस्मत मेरी अब और क्या दिखलाएगी ।
हरपल यही सदा क़त्ल मुझको करे ,
तू जायेगी , तू जायेगी , तू जायेगी ।
सदा = आवाज़
जान कैसे जिस्म में रह पायेगी ,
हर पल यही सदा क़त्ल मुझको करे,
तू जायेगी, तू जायेगी, तू जायेगी ।
तू चली जायेगी मैं रह जाऊँगा ,
गम भला कैसे ये मैं सह पाउँगा ,
रास्तों तुम कितने खुश नसीब हो ,
मैं कहाँ उन क़दमों को चूम पाउँगा ,
ख्वाब में ही दीद अब होगा तेरा ,
तू कहाँ हद्दे नज़र में आएगी ।
तेरे बगैर साँस गर चलती रही ,
ज़िन्दगी उसको न मैं कह पाउँगा ,
पहलू मैं तेरे ,आज मर जाऊं मगर ,
तेरे बिना ज़िंदा नहीं रह पाऊंगा ,
जाना तेरा देखूंगा इन आंखों से मैं ,
किस्मत मेरी अब और क्या दिखलाएगी ।
हरपल यही सदा क़त्ल मुझको करे ,
तू जायेगी , तू जायेगी , तू जायेगी ।
सदा = आवाज़
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
वो चाँद ढल रहा है
वो चाँद ढल रहा है ,
इधर मेरी ज़िन्दगी ,
ये रात आखिरी है ,
तेरे मेरे साथ की ।
मैं तेरे क़दमों की ,
ख़ाक भी न पा सका ,
चूमेगा कोई मेहंदीयां ,
तेरे हाथ की ।
खार भी राहों के तेरी ,
मैं न चुन सका ,
बिंदिया सजायेगा कोई ,
तेरे माथ की ।
तेरे बिना अब ज़िन्दगी ,
न बीत पाएगी ,
तुझसे जो पहले कट गयी,
वो और बात थी ।
दो चार दिन की बात हो तो ,
कोई काट ले ,
मुझको तो मिलनी है सज़ा ये ,
ता - हयात की ।
ख़ाक = धूल, खार = कांटे , ता - हयात = पूर्ण जीवन
इधर मेरी ज़िन्दगी ,
ये रात आखिरी है ,
तेरे मेरे साथ की ।
मैं तेरे क़दमों की ,
ख़ाक भी न पा सका ,
चूमेगा कोई मेहंदीयां ,
तेरे हाथ की ।
खार भी राहों के तेरी ,
मैं न चुन सका ,
बिंदिया सजायेगा कोई ,
तेरे माथ की ।
तेरे बिना अब ज़िन्दगी ,
न बीत पाएगी ,
तुझसे जो पहले कट गयी,
वो और बात थी ।
दो चार दिन की बात हो तो ,
कोई काट ले ,
मुझको तो मिलनी है सज़ा ये ,
ता - हयात की ।
ख़ाक = धूल, खार = कांटे , ता - हयात = पूर्ण जीवन
रविवार, 2 नवंबर 2008
तेरे हुस्न की शराब से
तू हुस्न है मग़रूर है ,
मैं इश्क हूँ ,मजबूर हूँ ,
तेरे सामने भले नहीं ,
तेरे हुस्न की शराब से ,
जो चढा है , मैं वो सुरूर हूँ ,
क़दमों में जो गिरा तेरे ,
उस शख्स का गुरूर हूँ ,
तू हूर है जन्नत की तो ,
मैं भी खुदा का नूर हूँ ,
तेरे हुस्न के चर्चे हैं तो ,
मैं इश्क में मशहूर हूँ ।
मैं इश्क हूँ ,मजबूर हूँ ,
तेरे सामने भले नहीं ,
पर छिपा -छिपा तो ज़रूर हूँ ।
तेरे हुस्न की शराब से ,
जो चढा है , मैं वो सुरूर हूँ ,
क़दमों में जो गिरा तेरे ,
उस शख्स का गुरूर हूँ ,
तू हूर है जन्नत की तो ,
मैं भी खुदा का नूर हूँ ,
तेरे हुस्न के चर्चे हैं तो ,
मैं इश्क में मशहूर हूँ ।
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