गुरुवार, 14 अगस्त 2014

जो सच है, कहता है..............



ग़ुलामी के क़िलों  में फ़िर मनेगा जश्ने-आज़ादी,
कोई इन अहमकों से पूछे कितनी-कैसी आज़ादी,

जिन्होंने अस्मिता लूटी है मिल, भारत की सदियों तक,
उन्हीं की ही दिवारें फ़िर सजेंगी, कैसी आज़ादी,

यहाँ परताप और चौहान को, पूछेगा न कोई,
मुग़लिया शान, शाने-मुल्क, है ये कैसी आज़ादी,

शिवाजी के क़िले से क्यूं नहीं, झंडा ये फहराते, 
ज़हन में है ग़ुलामी अब भी इनके, कैसी आज़ादी ,

उन्होंने बुद्ध की मूरत उड़ा दी, तोप से बेख़ौफ़,
तुम अब भी हो सहेजे लाल किल्ला,कैसी आज़ादी,

अयोध्या में मेरे श्री राम, अपने घर में बेघर हैं,
है होती ताज-महल की हिफाज़त,कैसी आज़ादी,

निशानी ज़ालिमों की, मुल्क की पहचान, आख़िर क्यों,
मकां मेरा है, तख्ती दुश्मनों की, कैसी आज़ादी,

ज़हन आज़ाद है संजीवका, जो सच है, कहता है,
जो डर से तुम सराहो न, तो सोचो, कैसी आजादी...........संजीव मिश्रा 

अहमक=मूर्ख, परताप=श्री राणा प्रताप, चौहान=श्री पृथ्वी राज चौहान, शाने-मुल्क=देश की शान, तख्ती= नेम प्लेट

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