पूस की इक रात सी ये जिंदगी,
सर्द झंझावात सी ये ज़िंदगी,
चैन की इक सांस भी न दे सके,
दुश्मन की इक सौग़ात सी ये ज़िन्दगी,
मांग में सुख का न है सिन्दूर भी,
खोये हुए अहिवात सी ये ज़िंदगी,
सुविधा-सुकूं-सम्रद्धि के ज़ेवर नहीं,
इक लुट चुकी बारात सी ये ज़िंदगी,
वो ही हो न पाया जो ये चाहती,
मन में दबी इक बात सी ये ज़िंदगी,
कर्म की तलवार पर भारी पड़ी,
दैव के आघात सी ये ज़िंदगी,
उम्र भर क़ाबू में न आ पाए जो,
“संजीव” के हालात सी ये ज़िंदगी ............संजीव मिश्रा
सर्द झंझावात सी ये ज़िंदगी,
चैन की इक सांस भी न दे सके,
दुश्मन की इक सौग़ात सी ये ज़िन्दगी,
मांग में सुख का न है सिन्दूर भी,
खोये हुए अहिवात सी ये ज़िंदगी,
सुविधा-सुकूं-सम्रद्धि के ज़ेवर नहीं,
इक लुट चुकी बारात सी ये ज़िंदगी,
वो ही हो न पाया जो ये चाहती,
मन में दबी इक बात सी ये ज़िंदगी,
कर्म की तलवार पर भारी पड़ी,
दैव के आघात सी ये ज़िंदगी,
उम्र भर क़ाबू में न आ पाए जो,
“संजीव” के हालात सी ये ज़िंदगी ............संजीव मिश्रा