सोमवार, 15 दिसंबर 2014

ये ज़िंदगी............

पूस की इक रात सी ये जिंदगी,
सर्द झंझावात सी ये ज़िंदगी,

चैन की इक सांस भी न दे सके,
दुश्मन की इक सौग़ात सी ये ज़िन्दगी,

मांग में सुख का न है सिन्दूर भी,
खोये हुए अहिवात सी ये ज़िंदगी,

सुविधा-सुकूं-सम्रद्धि के ज़ेवर नहीं,
इक लुट चुकी बारात सी ये ज़िंदगी,

वो ही हो न पाया जो ये  चाहती,
मन में दबी इक बात सी ये ज़िंदगी,

कर्म की तलवार पर भारी पड़ी,
दैव के आघात  सी ये ज़िंदगी,

उम्र भर क़ाबू में न आ पाए जो,
“संजीव” के हालात सी ये ज़िंदगी ............संजीव मिश्रा

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