मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

मेरे घर ........

मेरे घर ........
आसमान से ज़्याद उजाला मेरे घर,
इक दूना रौशन चाँद खिला है, मेरे घर,

वो उधर बादलों में सकुचाया-सिमटा सा,
ये इधर है झेंपा-झेंपा सा कुछ, मेरे घर,

जूही के इन गजरों की शान बढ़ाता सा,
ये फिरे गुलाबों सा महका कुछ, मेरे घर,

वो रात चमक कर दिन में फ़िर खो जाएगा,
ये हरदम मेरे साथ रहेगा, मेरे घर,

वो दूर पहुँच से सदा सभी की, तनहा-सा,
ये सदा मेरी बांहों में होगा, मेरे घर,

सोने-चांदी की चमक भले ही कुछ कम हो,
है शुक्र, प्यार की दौलत है कुछ, मेरे घर,

जज़्बात-मुहब्बत की ख़ुशबू फैले हरदम,
न दिलों में दूरी कभी बने अब, मेरे घर,

ग़र मुझसे कोई भूल हो तो लड़ लेना तुम,
पर छोड़ मुझे न जाना फ़िर तुम, मेरे घर,

इस करवा की ये चौथ, सदा संग-संग बीते,
हर दिन बीते उस संग मेरा, अब , मेरे घर,

जो कुछ है मेरे पास, करम उस ही का है,
“संजीव” उसी से ख़ुशी सभी अब, मेरे घर ......... संजीव मिश्रा

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