शनिवार, 15 मार्च 2014

तो क्या खेली होली.....



उल्फ़त के रंग से, मुहब्बत की होली,
जो उनसे न खेली, तो क्या खेली होली,

जो जानम को कस के, न बांहों में जकड़ा,
गले न मिले ग़र, तो क्या खेली होली,

न बालों को कस के, पकड़ के जो उनके,
न बोसे लिए ग़र, तो क्या खेली होली,

जो, उन्होंने हया से, मुझे याद करते,
न कुर्ती निचोड़ी, तो क्या खेली होली,

जो “संजीव” ने उनको अपने ही रंग में,
रंगा न अगर, फ़िर, तो क्या खेली होली......संजीव मिश्रा

1 टिप्पणी:

  1. बहुत खूब ...सच अहि जब साजन के साथ न खेली तो काहे कि होली ..
    लाजवाब .. बधाई होली की ....

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