शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

सर नवाता है......



हमेशा आईना भी कब भला सच बोल पाता  है,
शमा रौशन है कितनी, ये तो, परवाना बताता है,

वो हैं ये पूछते के  हम भी क्या कुछ ख़ूबसूरत हैं,
मैं कहता हूँ मेरा अन्दाज़, तुमको क्या जताता है,

तुम्हें मालूम क्या तुम क्या हो,ज़ालिम,हुस्न,क़ातिल हो,
तबस्सुम से तुम्हारे ही तो सब ये नूर आता है,

न जाने हुस्न वाले हमको कितने, रोज़ मिलते हैं,
है दिल ये ढूंढता कुछ ख़ास, कब सब पर ये आता है,

ये है बस इश्क जो माशूक़ को, माशूक़  करता है,
किसी लड़की को लैला भी, कोई मजनूँ बनाता है,

है ग़र तुमसा नहीं कोई, तो हमसे भी बहुत कम हैं,
ज़रा ढूंढो कोई जाकर, ग़ज़ल तुम पर जो गाता है,

कोई पत्थर भी हो सुन्दर, तो फ़िर, पत्थर नहीं रहता,,
कोई "संजीव" आकर रोज़, उसको सर नवाता है। .....संजीव मिश्रा

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