गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

दुःख के दैत्य जीते हैं.......

दुःख के दैत्य जीते हैं..............


अधूरी कामना के, विष पयाले, हम भी पीते हैं,
कभी आकर तो देखो, हम यहाँ पर कैसे जीते हैं,

वहाँ कैलाश से, तुमको तो सब कुछ, दीखता होगा,
के कैसे जीने की हसरत लिए, सब दिन ये बीते हैं,

समस्याएं हिमाला बन, खड़ी है सामने, हर दिन,
सिया कुर्ता-फटा कल, आज जूते भी, ये सीते हैं,

हो तुम स्वामी त्रिलोकों के, हमारी फ़िक्र कुछ कीजे,
सदा "संजीव" ही हारा, ये दुःख के दैत्य जीते हैं..............संजीव मिश्रा

1 टिप्पणी: