सोमवार, 20 जनवरी 2014

कश्मीरी पंडित ....

पंडित.......
कश्मीरी पंडितों का चर्चा न उन्हें भाया,
इंसानियत का जज़्बा अब तक है नहीं आया,

घड़ियाली आंसू कहते, हमदर्दी को वो मेरी,
इंसान से इंसां का, रिश्ता न नज़र आया,

उन्हें दीखते हैं पंडित, इंसां न दीखते हैं,
हैराँ हूँ ये नज़रिया, उनमें कहाँ से आया,

ग़र दर्द में हों पंडित, कोई बात न हो उनकी,
बस ज़िक्र हो उन्हीं का, फ़रमाँ है उनका आया,

वो बात करें उसकी, खोया अतीत में जो,
अब योग्यता से ज़्यादा, पाते, न नज़र आया,

मज़लूम, दबा-कुचला, मुफ़लिस,कोई भी वंचित,
बिन देखे जात मैंने, गले है उसे लगाया,

तुम बातें अब भी करते, हो बांटने की केवल,
मैं जोड़ने की नीयत, हूँ लेके यहाँ आया ,

नफ़रत ये पंडितों से, कैसी है, किसलिये है,
पंडित है कौन शायद, तुमको समझ न आया,

रौशन दिमाग़ हो ग़र, दिल पाक़, नेक-नीयत,
हो इल्म का पुजारी , पंडित वही कहाया,

मैं फ़ख्र से कहता हूँ, पंडित हूँ, हूँ मैं पंडित,
तुम जो हो, मैंने तुममें , पंडित नहीं है पाया,

कश्मीरी पंडितों में, इंसान भी तुम देखो,
“संजीव” बात इतनी, है समझाने तुम्हें आया ..........संजीव मिश्रा

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