सोमवार, 20 जनवरी 2014

बेटियाँ..

चला जब आज घर से मैं तो दोनों बेटियाँ रोयीं,
लिपट कर बस यही बोलीं कहीं पापा न तुम जाओ,

न अब तुमसे कभी हम कुरकुरे या टॉफी मांगेंगे,
नहीं चहिये हमें कुछ बस हमारे साथ रह जाओ,

मेरी गुल्लक में पैसे हैं, मैं सारे आपको दुंगी,
अगर पैसों की ख़ातिर जा रहे हो आप, मत जाओ,

भरा दिल और नम आँखें लिये चुप मैं चला आया,
यही कह आया उनकी माँ से के बच्चों को समझाओ,

मगर अब सोचता हूँ मैं के ये दस्तूर कैसा है ,
सिरफ कुछ चन्द पैसों के लिए घर छोड़ कर आओ,

के बस जिनके लिये जद्दोजहद, सारी मशक्कत ये,
उन्हीं का दिल दुखाकर, छोड़कर रोता उन्हें आओ,

बहुत तक़दीर वाले हैं जो हैं बच्चों के संग अपने,
दुआ करना मुक़द्दर न कभी “संजीव” सा पाओ................संजीव मिश्रा

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