शनिवार, 9 नवंबर 2013

अभी तक न आये.....

पत्थर    की अहिल्या  सा जीवन बीता जाये,
पर सुख की साँसों के राम अभी तक न आये,

भाग्य बना   दुष्यंत, भुला  शा-कुंतल-जीवन,
मछुआरे मुंदरी   लिये   अभी  तक न आये,

है प्राप्त मनुज का देह, भाग्य; शापित सुर सा,
कोई   शापोद्धारक   मुनि  अभी तक न आये,

इस दुर्बल तन, रोगी मन  का वैध्य वही मेरा,
जाने   मेरा उपचार ,   अभी  तक न  आये,

“संजीव”    ह्रदय   की नाव   रही सूनी-सूनी,
कोई मृगनयनी, कुंतल-श्याम, अभी तक न आये..............संजीव मिश्रा

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