बुधवार, 6 नवंबर 2013

अब रात हो चली है......



वो   सो  गये हैं, शायद, अब रात हो चली है,

फ़िर ख़त्म    इक  अधूरी सी बात हो चली है,



अपना है क्या, हैं हम तो, इक अनसुनी कहानी,

इक अनकहा सा क़िस्सा, इक मौज बिन रवानी,

इक फूल अधखिला सा, इक टूटा सिलसिला सा,

बचपन  यतीम का, या, इक विधवा की जवानी,



अब    ज़िन्दगी   ग़मों की बारात हो चली है,

फ़िर ख़त्म    इक  अधूरी सी बात हो चली है........



अब   तो  हयात है बस, क़ातिल  के हुक्म जैसी,

बिन बहर की  ग़ज़ल सी, बिन वज्न नज़्म जैसी,

हैं   आह पर   भी   पहरे,  फ़रियाद पे पाबन्दी,

मजलूम पे,   बेबस  पे,   जाबर के ज़ुल्म जैसी,



“संजीव”,   उलझनों   की   अफ़रात हो चली है,

फ़िर ख़त्म    इक  अधूरी सी बात हो चली है........



वो   सो     गये हैं, शायद, अब रात हो चली है,

फ़िर ख़त्म    इक  अधूरी   सी  बात हो चली है.

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