शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

ख़ुदाई से गिले होंगे.......

दिवाली आयेगी  फ़िर  दिल जलाने कुछ ग़रीबों का,
कहीं  चूल्हे  बुझे  होंगे,   कहीं  दीपक  जले होंगे,

कहीं  कुछ  भूखे  बच्चे सोयेंगे बस डांट खा माँ की,
बहुत  अरमां   पटाखे  बन  के  धूएँ में मिले होंगे,

तुम्हारा क्या है तुम पर तो  ख़ुदा है मेहरबां दिल से,
तुम्हें   कपड़े    नए,  जूते   फटे हमने सिले होंगे,

दिवाली  की  अमावस में  तू  होना चाँद सी रौशन,
खिज़ां  के  फूल  ठहरे  हम, बियाबां में खिले होंगे,

ज़रा  सा  सोचना  हर इक धमाका कर के तुम थोड़ा,
मकां  किस  तरहा  से  कितने  ग़रीबों के हिले होंगे,

न हो जब तक, हर इक घर में चरागाँ , पेट भर रोटी,
ख़ुदा  “संजीव”   को  तेरी  ख़ुदाई   से  गिले  होंगे.......

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