शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

फ़ितरत है बड़ी सादी सी....

मैं जो  तनहा हूँ   इधर,   वो भी अकेले होंगे,
ये      अलग  बात   हसीं यादों  के मेले होंगे,

आज   की  रात मेरी बांहों में गुज़र जाने दो,
कल से फिर सारे वही दुनियावी झमेले होंगे,

चाहने   वाले   तुम्हें   यूं   तो   बहुत   सारे है,
तुमपे मिट जाए जो, हम शख्स वो पहले होंगे,

माना "संजीव" की फ़ितरत है बड़ी सादी सी,
ख्व़ाब   पर   उसके   बड़े   रंगीं,  रुपहले होंगे.....

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......

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  2. बहुत खूब ... दुनिया के झमेले तो झेलने ही हैं ..
    लाजवाब गज़ल .. दशहरा की मंगल कामनाएं ...

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