शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

दुश्मन से निभाते हैं...............

अवसाद की घड़ियाँ हैं,तन्हाई के लम्हे हैं,
तुम्हें क्या बताएं कैसे हम दिन ये बिताते हैं,

बेज़ार हो चुके हैं इस क़द्र ज़िन्दगी से,
रेखाएं उमर वाली हम खुद ही मिटाते हैं,

वो हैं नसीब वाले जिन्हें जीस्त रास आयी,
हम जी रहे हैं जैसे दुश्मन से निभाते हैं,

"संजीव" खेल है ये, इक सिर्फ मुक़द्दर का,
किस्मत की तरह वो भी अब हमको सताते हैं..........

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