शनिवार, 10 अगस्त 2013

इश्क़ के किस्से हुए पुराने हैं....

इश्क़ के किस्से हुए पुराने हैं,
हुस्न के भी बहुत अफ़साने हैं,
आओ के बैठें साथ मिल कर हम,
मुद्दे कुछ और भी सुलझाने हैं......

ज़ीस्त आगे भी है ऐ दोस्त मेरे,
नाज़नीनों के इन रुखसारों से,
मिले माशूक से फुर्सत तो हाल दुनिया का,
पूछ इन आज के अखबारों से,

तल्ख़ हालात मुल्क के हैं तेरे  ,
उस हसीं ज़ुल्फ़ के साये  बहुत सुहाने हैं....

देख क्या हाल बच्चियों का है,
एक हैवान भी शरमा जाए,
जम्मू-कश्मीर ,असाम और यूपी,
देख दिल मेरा ये सहमा जाये,

कुछ-न-कुछ तो पड़ेगा  अब करना,
सोये अब लोग  ये जगाने हैं.....

फ़ौज ही खुद नहीं महफूज़ यहाँ,
घुस के दुश्मन ही मार जाता है,
और ये बेहया निज़ाम  अपना,
दोस्ती का ही गीत गाता है,

चल-चलें आज निकल, दुश्मन  से,
सर  जवानों के ले के आने हैं.....

मुझको मालूम है के बेज़ा है,
गूंगे-बहरों से मेरा कुछ कहना,
बेचना है ये बस चश्मे जैसे,
बीच अंधों के गाँव में रहना,

फ़िर भी "संजीव" मुल्क मेरा है,
सारे हथियार आज़माने हैं........

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