मंगलवार, 13 जनवरी 2009

इतना ग़म न कोई पायेगा आगे अब ............

इतना ग़म न कोई पायेगा आगे अब ,
सिलसिला ये खतम , मैं ही आखीर हूँ ।

बदनसीबी की इक ज़िंदा तस्वीर हूँ ,
गौर से देखिये ग़म की तहरीर हूँ ।

बोझ हूँ इक मैं ख़ुद अपनी ही रूह पर ,
ख़ुद के सीने में चुभता हुआ तीर हूँ ।

मुस्कुरा ना सका दो घडी भी कभी ,
इन लबों पे उदासी की ज़ंजीर हूँ ।

एक चिलमन हूँ मैं हर खुशी के लिए ,
ख़ुद की आँखों में ठहरा हुआ नीर हूँ ।

हूँ ख़ुशी मैं रकीबों के दिल में दबी ,
खैरख्वाहों के दिल में छिपी पीर हूँ ।

तेरी बस्ती यहाँ से है दिखती नहीं ,
रंज की दुनियाँ का एक रह्गीर हूँ ।

शाहज़ादा हूँ मैं ही बुरे वक्त का ,
क़िस्मते-बद की मैं ही तो जागीर हूँ ।

कोशिशों में मेरी, ना थी कोई कमी ,
जो नसीबा से हारी वो तदवीर हूँ ।

ख़्वाब 'संजीव' के अब न देखे कोई ,
जो बिगड़ के न संवरे वो तक़दीर हूँ ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. oh really a very touching feeling.more than a poem......bahut lambe sama ke baad koi rachna mujhe bahut achhi lagi. really a masterpiece.

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  2. हूं खुशी मैं रकीबों के दिल में दबी...
    बहुत अच्‍छे बन्धू....छा गये।

    आखिरी शेर सोने पर सुहागा।

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  3. बहुत ही उम्दा लिखा है......सारे के सारे शेर एक से बड़कर एक हैं......
    ख़ुद की आंखों में तेरा हुआ नीर तो कमाल का है.......\\


    अक्षय-मन

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  4. तेरी बस्ती यहाँ से है दिखती नहीं ,
    रंज की दुनियाँ का एक रह्गीर हूँ
    सुन्दर रचना बधाई

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  5. बहोत बढ़िया लिखा है आपने संजीव जी,...बहोत बधाई ..


    अर्श

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  6. ख़ुद की आँखों में ठहरा हुआ नीर हूँ ...
    वाह ! बहोत ही असरदार ब्यान है, पूरी ग़ज़ल पढ़ लेने के बाद मन
    को इक अजीब सा सुकून हासिल होता है .
    शुक्रिया ....
    ---मुफलिस---

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