मंगलवार, 6 जनवरी 2009

तुम्हीं आओ के तुम ही जानो ये जादू चलाना.....१

चाहता हूँ मैं भी अब कुछ मुस्कुराना ,
तुम्हीं आओ के तुम ही जानो ये जादू चलाना ।


तुम्हारे रूप में सिद्धी , हैं तंतर सब अदाओं में ,
बखूबी जानो तुम मृत भावनाओं को जिलाना ।


तुम्हारे पास सब टोने ,तुम्हारे पास सब मंतर ,
तुम्हीं जानो के कैसे रोते को रोना भुलाना ।


लबों को करके तिरछा वो तुम्हारा मुंह बनाना ,
मुझे है याद पल भर में मेरा गुस्सा भुलाना ।


मुझे है याद वो तेरा झटकना गीले बालों को ,
भिगोने को मुझे पूरा वो केशों को झुलाना ।


ये जो कुछ पक्तियां ‘संजीव’ लिख बैठा हो जज्बाती ,
न देखो इनपे तुम हंसना , न तुम गुस्सा दिलाना ।


न मैं ‘ग़ालिब’ , न मैं ‘साहिर’ , न ही ‘दुष्यंत’ हूँ मैं ,
बड़ी मुश्किल से सीखा है ये तुक से तुक मिलाना ।



4 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारे रूप में सिद्धि है,
    है तंतर सब अदाओं में....
    वाह ! याद नही पड़ता आज से पहले किसी ग़ज़ल में
    मैंने ऐसी खूबसूरत बानगी देखी हो
    लेकिन सच मुच बहोत अच्छा लग रहा है सब पढ़ते हुए
    बधाई !!
    मुफलिस .

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  2. बहुत बढ़िया,,,दिल खुश हो गया...आखिरी शेर, शेर नही सवा शेर था|

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  3. bahut badhiya.tumhare rup me siddhi hai, hai tantar sab adao me......bahut badhiya ekdam alg or naya.....

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