सोमवार, 29 दिसंबर 2008

क़ैदी सा , जिए जाते हैं ........१

सब यहाँ कैसे खिलखिलाते हैं ,
कैसे जी भर तबस्सुम यहाँ लुटाते हैं ,
देख न ले कहीं तक़दीर हमको हँसते हुए ,
अपने होठों की मुस्कुराहट भी हम छुपाते हैं ।

कुछ को दुनिया है ये मैदाने-खेल की तरहा ,
और कुछ को है ये ऐशो-आराम की जगहा ,
आए हैं कुछ यहाँ बा - इज्ज़त एक न्यौते पर ,
हमारे जैसे तो क़ैदी से लाये जाते हैं ।

हमको हक़ है नहीं दिया गया कुछ जीने का ,
हमको है दी गयी सज़ा ये ज़िंदा रहने की ,
हमको न दी गयी इजाज़त है कुछ भी कहने की ,
क़ैद में हैं हम , क़ैदी सा , जिए जाते हैं ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. हमको हक़ है नहीं दिया गया कुछ जीने का ,
    हमको है दी गयी सज़ा ये ज़िंदा रहने की ,
    हमको न दी गयी इजाज़त है कुछ भी कहने की ,
    क़ैद में हैं हम , क़ैदी सा , जिए जाते हैं ।
    bahut khub

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  2. "देख न ले कहीं तक़दीर हमको हँसते हुए ,
    अपने होठों की मुस्कराहट भी हम छुपाते हैं ।"

    अब क्या कहें....बहुत ही शानदार|

    "आपके ब्लॉग पर हम, कुछ यूँही खींचे चले आते हैं"

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