रविवार, 2 नवंबर 2008

तेरे हुस्न की शराब से

तू हुस्न है मग़रूर है ,
मैं इश्क हूँ ,मजबूर हूँ ,

तेरे सामने भले नहीं ,
पर छिपा -छिपा तो ज़रूर हूँ ।

तेरे हुस्न की शराब से ,
जो चढा है , मैं वो सुरूर हूँ ,

क़दमों में जो गिरा तेरे ,
उस शख्स का गुरूर हूँ ,

तू हूर है जन्नत की तो ,
मैं भी खुदा का नूर हूँ ,

तेरे हुस्न के चर्चे हैं तो ,
मैं इश्क में मशहूर हूँ ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. तेरे हुस्न के चर्चे हैं तो ,
    मैं इश्क में मशहूर हूँ ।

    bahot khub bahot sundar ... dhero sadhuwad....

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  2. इधेर से गुजरा तथा सोचा सलाम करता चलू....आभेर ऐसी सुंदर प्रस्तुति के लिए

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  3. dear friend,
    aap to mukammal kitab lagte ho
    doosre chand to tum aftab lagte ho.
    bahut shandar gazal likhi hai bandhu, ise keval tareef nahi haqikat maniye.
    meri duayen ,namashkar sweekariye .
    dr.bhoopendra rewa m.p

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